Karpoori Thakur Biography in Hindi : कर्पूरी ठाकुर को बिहार का जननायक आया जाता है बिहार के दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं ऐसे में कर्पूरी ठाकुर आजकल मीडिया में चर्चा का विषय बने हुए है कर्पूरी ठाकुर एक ऐसे राजनेता थे जो गरीबों के हित के लिए काम करते थे उनका व्यक्तित्व काफी ईमानदार था’ इसके पीछे की वजह है कि केंद्र सरकार के द्वारा उन्हें भारत रत्न अवार्ड देने की घोषणा की गई हैं।
ऐसे में अधिकांश लोग कर्पूरी ठाकुर के जीवन परिचय के बारे में जानना चाहते हैं कि कर्पूरी ठाकुर कौन है? प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, परिवार, राजनीतिक कैरियर मिलने वाला अवार्ड मृत्यु तिथि इत्यादि अगर आप इन सब के बारे में नहीं जानते हैं तो आज के आर्टिकल में हम आपको Karpoori Thakur Ka Jeevan Parichay के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे आर्टिकल पर बने रहिएगा चलिए जानते हैं-
Contents
कर्पूरी ठाकुर का जीवनी
वास्तविक नाम | Karpoori Thakur |
निक नाम | जन नायक |
लिंग | पुरुष |
जन्म | 24 जनवरी, 1924 |
वृद्ध | 64 वर्ष |
मौत की तिथि | 17 फ़रवरी 1988 |
जन्म स्थान | पितौंझिया, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु स्थान | पटना, बिहार, भारत |
मूल | भारत |
धर्म | हिन्दू धर्म |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
विद्यालय | Local School |
विश्वविद्यालय | बिहार का स्थानीय कॉलेज |
अभिभावक | पिता – गोकुल ठाकुरमाता:- रामदुलारी देवी |
भाई-बहन | Ramsugat Thakur |
के लिए प्रसिद्ध | दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे |
पेशा | स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनीतिज्ञ |
Marital Status | विवाहित |
पत्नी | Phulmani Devi |
बच्चे | Ram Nath Thakur |
ऊंचाई | सेंटीमीटर में – 167मीटर में – 1.6फीट में इंच – 5’6 |
वज़न | किलोग्राम में- 86.1पाउंड में- 190 पाउंड |
बालों का रंग | काला |
आँखों का रंग | काला |
कौन है कर्पूरी ठाकुर?
24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर एक समाजवादी नेता थे, जो दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे – दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक।
‘जन नायक’ या लोगों के नायक के रूप में लोकप्रिय, ठाकुर हिंदी भाषा के भी समर्थक थे, और बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में, उन्होंने मैट्रिक पाठ्यक्रम के लिए अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी को हटा दिया था।
अपने कॉलेज के दिनों में, वह एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) में शामिल हुए। 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने अपना कॉलेज छोड़ दिया।
कर्पूरी ठाकुर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर के पितौझिया (अब कर्पूरीग्राम) गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गोकुल ठाकुर और माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। उनके पिता एक किसान और नाई के रूप में काम करते थे। छह साल की उम्र में उन्हें गांव के स्कूल में भर्ती कराया गया और यहीं से कर्पूरी ठाकुर ने नेतृत्व क्षमता सीखी। अपने छात्र जीवन के दौरान उन्होंने युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल की।
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उन्होंने 1940 में पटना विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। मैट्रिक द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद चन्द्रधारी मिथिला कॉलेज, दरभंगा में आई.ए. में दाखिला लिया। आज़ादी के बाद उन्होंने अपने गाँव में एक शिक्षक के रूप में काम किया।
इसके बाद उन्होंने 1942 में द्वितीय श्रेणी में आईए (इंटरमीडिएट ऑफ आर्ट्स) पास किया और फिर उसी कॉलेज से बीए किया
कर्पूरी ठाकुर का परिवार
पिता का नाम | गोकुल ठाकुर |
माता का | फुलेश्वरी देवी |
पत्नी का नाम | अवेलेबल नहीं है |
बच्चों का नाम | बेटे का नाम रामनाथ ठाकुर |
आजादी में कर्पूरी ठाकुर का योगदान
कर्पूरी ठाकुर ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने 1942 में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और उस आंदोलन में हिस्सा लिया. उन्होंने जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित “आजाद दस्ता” का सक्रिय सदस्य बनकर तंग वित्तीय स्थिति से बाहर निकलने की योजना बनाई।
उन्होंने ₹30 प्रति माह की दर पर गांव के मिडिल स्कूल के हेडमास्टर का पद स्वीकार किया और दिन में स्कूल शिक्षक के रूप में और रात में “आजाद दस्ता” के सदस्य के रूप में काम किया।
उन्होंने बिहार की राजधानी पटना स्थित कृष्णा टॉकीज सिनेमा हॉल के पास भाषण दिया. जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत अपनी आजादी की लड़ाई बहुत आसानी से जीत सकता है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की जनसंख्या इतनी है कि अगर भारत के लोग एकजुट होकर सिर्फ थूक दें तो अंग्रेज भाग जायेंगे. इस भाषण के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन पर सज़ा भी लगा दी। भाई छोड़ो आंदोलन में सम्मिलित होने के कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया और 26 महीने तक उन्हें जेल में रखा।
कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक सफर
आजादी के बाद 1952 के पहले आम चुनाव में वह सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भारी बहुमत से समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से जीतकर बिहार विधान सभा के सदस्य बने, जहां उन्होंने विभिन्न समस्याओं पर आवाज उठाई।
1967 में गैर-कांग्रेसी सरकारों के गठन के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने महामाया प्रसाद के मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने मैट्रिक में अंग्रेजी की आवश्यकता को समाप्त कर दिया और उच्च शिक्षा में सार्वजनिक हित को बढ़ावा दिया।
1970 में कर्पूरी ठाकुर की पहली सरकार ने कई ऐतिहासिक फैसले लिए, जैसे आठवीं कक्षा तक की शिक्षा मुफ्त करना और उर्दू को दूसरी राज्य भाषा का दर्जा देना।
उन्होंने बाढ़, भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूमि सुधार, महँगाई और विकास जैसी समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया।
वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और उपमुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री भी रहे। उनकी लोकप्रियता के कारण उन्हें “जननायक” कहा जाता था।
कर्पूरी ठाकुर एक बार बिहार के उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विपक्षी दल के नेता रहे। 1952 में पहला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वे कभी बिहार विधानसभा चुनाव नहीं हारे।
1978 में जब वे बिहार के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने वंचित वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया, जिसके बाद उन्हें कई आलोचनाएँ और ताने मिले।
लेकिन वह अपनी नीति पर अड़े रहे. 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनकर उन्होंने अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता समाप्त कर दी और शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाने का काम किया।
1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने किसानों को बड़ी राहत दी और अलाभकारी भूमि पर कर लगाना बंद कर दिया।
1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वे मुंगेरीलाल आयोग की सिफ़ारिश पर राज्य की नौकरियों में आरक्षण लागू करके ऊंची जातियों के दुश्मन बन गये, लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने हमेशा दलित पिछड़े वर्गों के हितों के लिए काम किया।
मुख्यमंत्री रहते हुए, उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करना अनिवार्य कर दिया और राज्य में राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए समान वेतन आयोग लागू करने वाले पहले व्यक्ति थे।
युवाओं को रोजगार दिलाने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि उन्होंने कैंप लगाकर एक साथ 9000 से ज्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को नौकरी दे दी।
कर्पूरी ठाकुर ने पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने बेटे रामनाथ को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, ”आपको इससे प्रभावित नहीं होना चाहिए” यदि कोई तुम्हें प्रलोभन दे तो उस प्रलोभन में मत पड़ना। मेरी बदनामी होगी।
रामनाथ ठाकुर ने बताया कि पत्र में सिर्फ तीन बातें थीं- 1. आप इससे प्रभावित न हों. 2. यदि कोई तुम्हें प्रलोभन दे तो उस प्रलोभन में न पड़ें। 3. मेरी बदनामी होगी।
कर्पूरी ठाकुर का मृत्यु
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु 17 फरवरी 1988 को हार्ट अटैक के कारण हो गया था आज भले ही कर्पूरी ठाकुर हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्होंने गरीबों के हित के लिए जिस प्रकार के काम किए हैं उसके लिए हमारे दिल में सदा जीवित रहेंगे।
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु कैसे हुई?
कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था, उस समय उनकी उम्र 64 वर्ष थी।
कर्पूरी ठाकुर कौन से कास्ट के थे?
कर्पूरी ठाकुर नाई जाति के थे।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म कब और कहां हुआ था?
24 जनवरी 1924, समस्तीपुर
जन नायक कर्पूरी ठाकुर कौन है?
कर्पूरी ठाकुर (24 जनवरी 1924 – 17 फरवरी 1988) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो दो बार बिहार के 11वें मुख्यमंत्री रहे, पहले दिसंबर 1970 से जून 1971 तक, और फिर जून 1977 से अप्रैल 1979 तक। उन्हें जन के नाम से जाना जाता था।
कर्पूरी ठाकुर का उपनाम क्या है?
लोकप्रियता के कारण उन्हें ‘जननायक’ कहा जाता है।
निष्कर्ष
उम्मीद करता हूं कि हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल आपको पसंद आएगा आर्टिकल संबंधित अगर आपका कोई भी सुझाव या प्रश्न है तो आप हमारे कमेंट सेक्शन में जाकर पूछ सकते हैं। उसका उत्तर हम आपको जरूर देंगे तब तक के लिए धन्यवाद, और मिलते हैं अगले आर्टिकल में।